शास्त्रार्थ के माध्यम से भारत के शास्त्र को आने वाली पीढ़ी को समझाना-प्रो अमित शुक्ल
ब्यूरो चीफ आनंद सिंह अन्ना
वाराणसी। दिनांक 30 नवम्बर, संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में शनिवार को शास्त्रार्थ सभा का आयोजन परिसर के वाग्देवी मंदिर सभागार में आयोजित किया गया।शास्त्रार्थ सभा में संस्कृत शास्त्रों के विद्यार्थियों ने हिस्सा लिया, इस आयोजन में न्याय नीति,दर्शन शास्त्र,व्याकरण एवं साहित्य समेत कई तरह के विषयों पर चर्चा की गई। शास्त्रार्थ सभा के आयोजन के लिए वेदांत के आचार्य वेदांती प्रो रामकिशोर त्रिपाठी ने शास्त्रों के प्राचीन भारत में दार्शनिक एवं धार्मिकवाद-विवाद, चर्चा या प्रश्नोत्तर को शास्त्रार्थ (शास्त्र + अर्थ) कहते हैं। इसमें दो या अधिक व्यक्ति किसी गूढ़ विषय के असली अर्थ पर चर्चा करते थे। किसी विषय के सम्बन्ध में सत्य और असत्य के निर्णय हेतु परोपकार के लिए जो वाद-विवाद होता है उसे शास्त्रार्थ कहते हैं।
वेद वेदांग संकाय के अध्यक्ष प्रो अमित कुमार शुक्ल ने कहा कि शास्त्रार्थ सभा के आयोजन का मुख्य उद्देश्य है भारत के शास्त्र को आने वाली पीढ़ी को समझाना इसके साथ ही सही मायने में इनके अर्थों को लोक में प्रचार-प्रसार करना है।
वेद विभाग के आचार्य प्रोफेसर महेन्द्र पाण्डेय ने बताया कि नए शास्त्र पर यह शास्त्रार्थ सबसे ज्यादा लोकप्रिय हुआ है।इस विषय पर आने वाली पीढ़ियां भी गुरुओं के साथ विचार-विमर्श कर रही हैं।
शास्त्रार्थ सभा में रामसेवक ने न्याय में,शिवराम ने दर्शन में तथा रामप्रसाद ने व्याकरण विषय पर अपना शास्त्रार्थ प्रस्तुत किया तथा प्रशांत मिश्र ने अच:परस्मिन व प्रवीण पौडेल ने भूषणसार धात्वर्थ विषय में अपना पक्ष रखा।
शास्त्रार्थ के संयोजक डॉ दिव्य चेतन ब्रह्मचारी ने बताया कि शास्त्रार्थ में दुनिया के सत्य और ब्रह्म के स्वरूप को किस तरह जाना जाए इस बात पर भी प्रशिक्षित आचार्य और नई पीढ़ी विचार-विमर्श कर रहे हैं, पूरे देश में जिस तरह से बढ़ते गुरुकुल का प्रचलन है. उसको देखते हुए आगे भविष्य में देशभर के गुरुकुल से छात्र-छात्राओं को आमंत्रित कर शास्त्रार्थ कराया जाएगा।
वाग्देवी मंदिर में सम्पन्न हुये शास्त्रार्थ सभा के प्रारम्भ में मंगलाचरण, माँ वाग्देवी के प्रतिमा पर माल्यार्पण, प्रो अमित कुमार शुक्ल, प्रो महेन्द्र पाण्डेय के द्वारा दीप प्रज्वलन किया गया।
उक्त अवसर पर मुख्य रूप से प्रो अमित कुमार शुक्ल, प्रो महेन्द्र पाण्डेय, डॉ कुंज बिहारी द्विवेदी, डॉ दुर्गेश पाठक डॉ विजेंद्र कुमार आर्य, डॉ बालेश्वर झा आदि के साथ-साथ छात्र व कर्मचारी उपस्थित थे।