विश्वविद्यालय का 68 वाँ स्थापना दिवस समारोह यज्ञ के साथ मनाया गया।
ब्यूरो चीफ़ आनंद सिंह अन्ना
वाराणसी। दिनांक 31 मार्च, सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय के स्थापना दिवस समारोह के अवसर पर प्रातः9:30 बजे, वेद भवन में कुलपति प्रो बिहारी लाल शर्मा विश्वविद्यालय परिवार के कल्याण एवं राष्ट्र वैभव उत्थान के लिये "शक्ति समाराधन" किया गया। जिसमें वेद विभाग के आचार्यों के द्वारा दुर्गासप्तशती पाठ, गौरी-गणेश का विधि-विधान से षोडशोपचार विधि के साथ पूजन किया गया। स्थापनोत्सव पर्व के प्रारम्भ से आज सम्पूर्ण परिसर में वाद्ययंत्र के अविरल ध्वनि से गुंजायमान हो गया। सम्पूर्ण विश्वविद्यालय परिसर में अनवरत शहनाई की धुन और हवन की सुगंध से आच्छादित है। इस अवसर पर कुलपति प्रो शर्मा ने चन्दन, अंगवस्त्र एवं मिष्ठान खिलाकर सभी आचार्यों एवं अधिकारियों का सम्मान किया।
इस मौके पर उन्होंने कहा कि यह विश्वविद्यालय मूलतः 'शासकीय संस्कृत महाविद्यालय' था जिसकी स्थापना सन् 1791 में की गई थी। वर्ष 1894 में सरस्वती भवन ग्रंथालय नामक प्रसिद्ध भवन का निर्माण हुआ जिसमें हजारों पाण्डुलिपियाँ संगृहीत हैं। 22 मार्च 1958 को उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ सम्पूर्णानन्द के विशेष प्रयत्न से इसे विश्वविद्यालय का स्तर प्रदान किया गया। उस समय इसका नाम 'वाराणसेय संस्कृत विश्वविद्यालय' था। सन् 1974 में इसका नाम बदलकर 'सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय' रख दिया। उत्तर प्रदेश सहित देश भर के संस्कृत महाविद्यालय इससे सम्बद्ध हैं। यहां संस्कृत, संस्कृति एवं संस्कार के संगम का प्रवाह होने के साथ-साथ सनातन धर्म संस्कृति का संवाहक बन या संस्था भारतीयता और राष्ट्रीयता का भाव सम्पूर्ण देश वासियों में जागृत करने का अनवरत प्रयास कर रहा है। यहाँ शास्त्रों के ज्ञान के साथ-साथ आधुनिक भाषा और ज्ञान का भी अनुपम प्रांगण है। उ.प्र. शासन के उच्च शिक्षा विभाग द्वारा सत्र 2023-24 में सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी में ऑनलाइन संस्कृत प्रशिक्षण केंद्र की स्थापना की गई, जिसका लोकापर्ण दिनांक 2023 को उत्तर प्रदेश की राज्यपाल एवं विश्वविद्यालय कुलाधिपति महोदय श्रीमती आनन्दी बेन पटेल तथा उच्च शिक्षामंत्री उत्तर प्रदेश शासन श्रीमान योगेंद्र उपाध्याय जी के करकमलों द्वारा हुआ।
उक्त केंद्र के द्वारा ज्योतिष, वास्तु, कर्मकाण्ड, वेद, अर्चक, संस्कृत भाषा, पालि, योग, वेदान्त, प्राकृत एवं नवीन पाठ्यक्रमों की श्रृंखला में मन्दिर प्रबंधन आदि विषयों के त्रैमासिक, षाण्मासिक एवं वार्षिक डिप्लोमा पाठ्यक्रम संचालित किए जा रहे है जिसमें प्रवेश से परीक्षा तक की सम्पूर्ण प्रक्रिया ऑनलाइन संपादित की जाती है। बिना किसी पूर्व अर्हता के विश्व के किसी भी कोने से अभ्यर्थी इसमें अत्यन्त उत्साहपूर्वक प्रतिभाग कर रहे है एवं देश विदेश के 2000 से अधिक अभ्यर्थी इस केंद्र में पंजीकृत रहे हैं जिन्हें 26 मार्च को एक समारोह के माध्यम से उपाधि वितरित किया गया। साथ ही भारत के विशिष्ट आचार्यों के व्याख्यान एवं कक्षाएँ ऑनलाइन माध्यम से अभ्यर्थियों को प्रदान की जाती है। अभ्यर्थियों की माँग के दृष्टिगत पालि, प्राकृत एवं मंदिर प्रबंधन जैसे पाठ्यक्रमो को भी वर्तमान सत्र 2024 में प्रारम्भकिया जा रहा है।
1 अप्रैल से 15 मई तक प्रवेश प्रारम्भ किया गया। इस संस्था में भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के द्वारा आई केएस केन्द्र की सफलता पूर्वक स्थापना कर भारतीय ज्ञान परंपरा की ज्योति जलाया गया।
इस अवसर पर प्रो रामपूजन पांडे, प्रो सुधाकर मिश्र, प्रो शैलेश कुमार मिश्र, प्रो शम्भू नाथ शुक्ल, प्रो हरिशंकर पांडे, प्रो महेंद्र पांडे, प्रो दिनेश कुमार गर्ग, प्रो विजय कुमार पांडे, डॉ विजय कुमार शर्मा, डॉ दुर्गेश कुमार पाठक, डॉ कुंजबिहारी द्वीवेदी, डॉ पदमाकर मिश्र, राम विजय सिंह, नारायण दास व डॉ रमेश कुमार सिंह देवरहवाँ बाबा ट्रस्ट के प्रतिनिधि, विकास समिति के सदस्य ह्रदय नारायण पांडे, राष्ट्रीय स्वयं संघ के सदस्य मुरारी दास, सुशील कुमार तिवारी, संतोष कुमार दुवे, संजय कुमार तिवारी, संदीप कुमार चौबे, अंकुश कुमार शर्मा, अजितेशनाथ द्विवेदी, सुरेश कुमार, शिवांश उपाध्याय, नीतीश कुमार ठाकुर, सत्यानंद पांडे. जिज्ञासु पांडे के साथ छात्र, कर्मचारी उपस्थित थे।