शास्त्रार्थ महाविद्यालय में विश्वविद्यालय का स्थापना दिवस मनाया गया।
ब्यूरो चीफ़ आनंद सिंह अन्ना
वाराणसी। दिनांक 31 मार्च, संस्कृत विश्व की भाषाओं में सबसे प्राचीन और परिपूर्ण है। इसका ज्ञान भण्डार संसार की एक अद्वितीय और अमूल्य निधि है। यह भाषा विशिष्ट भारतीय परंपरा और विचार का प्रतीक है, जिसने सत्य की खोज में पूर्ण स्वतंत्रता का प्रदर्शन किया है। अतः संस्कृत जगत के अभ्युदय में सम्मपूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय का अहम योगदान है। उक्त बातें सोमवार को शास्त्रार्थ महाविद्यालय (दशाश्वमेध) में सम्मपूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय के स्थापना दिवस (चैत्र शुक्ल द्वितीया) के अवसर पर आयोजित गोष्ठी में राष्ट्रपति पुरस्कृत पूर्व प्राचार्य डॉ गणेश दत्त शास्त्री ने कही।
उन्होंने बताया कि आपसी सहिष्णुता व प्राच्य भाषाई ज्ञान का यह विश्वविद्यालय प्रमुख केंद्र रहा है। यहाँ न केवल भारतीय ही अपितु काफी संख्या में विदेशी भी संस्कृत भाषा के समृद्ध ज्ञान गंगा में गोता लगाकर अपने आप को तृप्त कर लेते हैं। यहाँ से शिक्षा प्राप्त कर चहुँ ओर इस भाषा की अलख जगा रहे हैं।
विशिष्ट वक्ता काशी पण्डित सभा के मन्त्री डॉ विनोद राव पाठक ने अपने सम्बोधन में कहा कि सम्मपूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय पूरे विश्व में अपनी एक अलग पहचान रखता है। इसके अंतर्राष्ट्रीय महत्व को उजागर करने और पारंपरिक विद्वता को अक्षुण्ण रखने तथा भारतीय एवं पश्चिमी दृष्टिकोण के बीच समझौता करने के विभिन्न पहलुओं पर शोध अध्ययन हेतु इस विश्वविद्यालय में अनेकों ख्यातिलब्ध धर्म धुरंदर विद्वान हुए हैं जिनके शिष्य आज भी संसार के कोने-कोने में संस्कृत भाषा के उन्नति व विकास के लिए निरंतर लगे हुए हैं जो काफ़ी सराहनीय है।
कार्यक्रम संयोजक शास्त्रार्थ महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ पवन कुमार शुक्ल ने कहा कि संस्कृत शिक्षा के क्षेत्र में सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय का अपना स्वर्णिम इतिहास रहा है। यह संस्था बनारस का गौरवशाली अतीत दर्शाता है। यहां वेद, वेदांत, पुराण, आयुर्वेद, साहित्य, ज्योतिष, धर्मशास्त्र, मीमांसा, न्याय आदि प्राच्य विषयों के अध्यापन की व्यवस्था है और इसी के साथ संस्कृत महाविद्यालयों में भी इसके द्वारा पठन-पाठन चलता आ रहा है। कह सकते हैं की सभी संस्कृत कॉलेज इस विश्वविद्यालय के श्रृंगार हैं तथा ये महाविद्यालय सदैव अपनी मातृ संस्था सम्मपूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय के साथ हर सुख दुख में खड़े रहते हैं। इस अवसर पर कई संस्कृत महाविद्यालयों के शिक्षक व सेवानिवृत्त अध्यापकों ने भी अपने-अपने विचार रखे।
अध्यक्षता पूर्व चिकत्साधिकारी डॉ सारनाथ पाण्डेय, धन्यवाद ज्ञापन टीकमाणी डिग्री कॉलेज के प्रवक्ता डॉ आमोद दत्त शास्त्री ने दिया।