Kashi ka News. राधाअष्टमी के महत्व और सामाजिक आयाम पर कुलपति का उद्बोधन व विचार।

 राधाअष्टमी के महत्व और सामाजिक आयाम पर कुलपति का उद्बोधन व विचार।

ब्यूरो चीफ़ आनंद सिंह अन्ना 

वाराणसी। भारतीय संस्कृति में प्रत्येक पर्व केवल धार्मिक अनुष्ठान मात्र नहीं है, अपितु वह समाज के आध्यात्मिक, सांस्कृतिक एवं राष्ट्रीय जीवन का प्राणतत्त्व है। राधाष्टमी ऐसा ही एक महनीय पर्व है, जिसे भाद्रपद शुक्ल अष्टमी को श्रीराधा जी के अवतरण-दिवस के रूप में मनाया जाता है। श्रीराधा प्रेम की पराकाष्ठा, भक्ति की चरम साधना और आत्मसमर्पण की अद्वितीय मूर्ति हैं। इस पर्व का महत्त्व केवल आध्यात्मिक क्षेत्र तक सीमित नहीं है, बल्कि यह भारतीय समाज में आधिदैविक, आधिभौतिक तथा समसामयिक परिप्रेक्ष्य में भी गहन प्रभाव उत्पन्न करता है। राधा को वैष्णव परम्परा में “भक्ति स्वरूपिणी” और “श्रीकृष्ण प्राणवल्लभा” कहा गया है। श्रीराधा का नाम स्वयं अनन्य भक्ति और निष्काम प्रेम का प्रतीक है। गीता में भगवान कहते हैं “भक्त्या मामभिजानाति” केवल भक्ति के माध्यम से ही परमात्मा की प्राप्ति संभव है। यह भक्ति राधा की करुणा से ही सुलभ होती है। अतः राधाष्टमी का पर्व साधक को यह सन्देश देता है कि ईश्वर तक पहुँचने का मार्ग केवल प्रेम, समर्पण और शुद्ध भक्ति है। आधिदैविक स्तर पर राधाष्टमी ब्रह्माण्डीय शक्तियों की संतुलनकारी ऊर्जा का प्रतीक है। भवनं धावनं रासे स्मरत्यालिंगनं जपन्। तेन जल्पति संकेतं तत्र राधां स ईश्वरः॥३९।। राशब्दोच्चारणाद्भक्तो राति मुक्तिं सुदुर्लभाम्।धाशब्दोच्चारणाद्दुर्गे धावत्येव हरेः पदम्*॥४०॥

( ब्रह्मवैवर्त पुराण खण्डः २ (प्रकृति खण्ड) अध्याय ४८)

संक्षिप्त भावार्थः (महादेव जी माता पार्वती से संवाद क्रम में कह रहे हैं ) महेश्वरि! मेरे ईश्वर श्री कृष्ण रास में प्रिया जी के धावनकर्म का स्मरण करते हैं, इसीलिये वे उन्हें ‘*राधा*’ कहते हैं, ऐसा मेरा अनुमान है। हे दुर्गे ! भक्त पुरुष ‘*रा*’ शब्द के उच्चारण मात्र से परम दुर्लभ मुक्ति को पा लेता है और ‘*धा*’ शब्द के उच्चारण से वह निश्चय ही श्रीहरि के चरणों में दौड़कर पहुँच जाता है। रा इत्यादानवचनो धा च निर्वाणवाचकः। ततोऽवाप्नोति मुक्तिं च तेन राधा प्रकीर्तिता*॥४॥ (ब्रह्मवैवर्त पुराण खण्डः २ (प्रकृति खण्ड) अध्याय ४८)

संक्षिप्त भावार्थः (महादेव जी माता पार्वती से कह रहे हैं ) ‘*रा*’ का अर्थ है ‘*पाना*’ और ‘*धा*’ का अर्थ है ‘*निर्वाण*’ (मोक्ष)। भक्तजन उनसे निर्वाणमुक्ति पाता है, इसलिये उन्हें ‘*राधा*’ कहा गया है।वैदिक दृष्टि से राधा ऊर्जा (शक्ति) हैं और कृष्ण पुरुष (शक्तिमान)। शक्ति और शक्तिमान का संयोग ही सृष्टि का मूल है। इस पर्व का आयोजन हमें दैविक शक्तियों की उपासना तथा उनके साथ सामंजस्य स्थापित करने का अभ्यास कराता है। आधिभौतिक दृष्टि से यह पर्व प्रकृति और मानव के बीच सामंजस्य का प्रतीक है। श्रीराधा को वृन्दावन की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है। वे वृक्षों, लताओं और पशु-पक्षियों की संरक्षिका हैं।अतः राधाष्टमी का पर्व हमें पर्यावरण संरक्षण, वृक्षारोपण, और प्रकृति-प्रेम का सन्देश देता है। भक्ति साहित्य में राधा को “प्रकृति की गोद” कहा गया है, जो इस पर्व को जीवन के भौतिक व पारिस्थितिक संतुलन से जोड़ता है। आधुनिक विज्ञान भी यह मानता है कि प्रेम, भक्ति और सकारात्मक भावनाएँ मनुष्य की मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य को पुष्ट करती हैं।राधाष्टमी का पर्व मनोविज्ञान के स्तर पर तनाव-निवारण, मानसिक शान्ति और सामाजिक सामंजस्य का साधन है। इस अवसर पर सामूहिक भजन, कीर्तन, उपवास और पूजन से सामूहिक चेतना में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। अतः यह पर्व सामाजिक स्वास्थ्य और मानसिक संतुलन का भी वैज्ञानिक आधार प्रस्तुत करता है। राधाष्टमी का पर्व स्त्री-शक्ति के गौरव का उद्घोष है। राधा केवल एक पात्र नहीं, बल्कि नारी-शक्ति की आध्यात्मिक पराकाष्ठा हैं। यह पर्व हमें यह स्मरण कराता है कि समाज में स्त्री का स्थान सहचरी, सहधर्मिणी और आध्यात्मिक पथप्रदर्शिका के रूप में सर्वोपरि है। राधा की भक्ति हमें समानता, करुणा, सहिष्णुता और सामाजिक समरसता का मार्ग दिखाती है। सामूहिक उपवास, उत्सव और भजन-कीर्तन से समाज में एकता, सद्भाव और सांस्कृतिक निरन्तरता पुष्ट होती है। जैसे विविधतापूर्ण देश में धार्मिक पर्व सामूहिक एकता और सांस्कृतिक आत्मबोध के सूत्रधार हैं।राधाष्टमी समाज को प्रेम और समर्पण आधारित आचरण की ओर अग्रसर करती है, जो राष्ट्र-निर्माण की मूल आधारशिला है। यह पर्व जनमानस को स्मरण कराता है कि आध्यात्मिकता ही राष्ट्र की वास्तविक शक्ति है। जब समाज राधा के आदर्शो निष्काम प्रेम, निष्ठा और आत्मसमर्पण को अपनाता है, तब राष्ट्र में नैतिकता, सांस्कृतिक समृद्धि और सामाजिक सौहार्द पुष्ट होता है।निष्कर्षतः राधाष्टमी केवल एक धार्मिक पर्व नहीं है, बल्कि जीवन-यात्रा का मार्गदर्शक सिद्धान्त है। यह पर्व हमें सिखाता है कि प्रेम ही जीवन का सार है, भक्ति ही परम साधना है और समर्पण ही मुक्ति का मार्ग है। आध्यात्मिक, आधिदैविक, आधिभौतिक और समसामयिक सभी स्तरों पर राधाष्टमी भारतीय समाज को संतुलन, ऊर्जा और प्रेरणा प्रदान करती है। अतः कहा जा सकता है कि राधाष्टमी का पर्व न केवल भारतीय संस्कृति का आभूषण है, बल्कि राष्ट्र के भविष्य को दिशा देने वाला सांस्कृतिक प्रकाश-स्तम्भ भी है।