Kashi ka News. सांस्कृतिक धरोहर है संस्कृत- डॉ नीलकंठ तिवारी

 सांस्कृतिक धरोहर है संस्कृत- डॉ नीलकंठ तिवारी

ब्यूरो चीफ़ आनंद सिंह अन्ना 

वाराणसी। अगस्त्य कुंड स्थित शारदा भवन गणेश उत्सव के दूसरे दिन गणेश ज़ी का दरबार संस्कृत के बटुकों व विद्वानों से पटा रहा। प्रारम्भ में संस्कृत परीक्षा आयोजित हुई जिसमें कुल 38 विद्यार्थियों ने प्रतिभाग किया। कनिष्ठ वर्ग में व्याकरण अष्टाध्यायी1 एवं 2 अध्याय, ज्योतिषशास्त्र का अवकड़हाचक्रम्, साहित्य से रघुवंश तृतीय सर्ग व दर्शन-मुक्तावली प्रत्यक्षखण्ड कारिका एवं वरिष्ठ वर्ग में व्याख्यान प्रतियोगिता हुई। इसमें साहित्य से मम्मट अथवा विश्वनाथमते लक्षणालक्षणविचारः वहीं व्याकरण में येनविधिस्तदन्तस्य, इको यणचि स्वतन्त्रः कर्ता में किसी एक सूत्र पर व्याख्यान हुआ।प्रथम स्थान प्राप्तकर्ता को शिवकुमार शिवाचार्य महास्वामी रजतपदक तथा द्वितीय, तृतीय पुरस्कार भी प्रदान किए गए। दोपहर बाद शास्वार्थ प्रतियोगिता आरम्भ हुई जिसमें क्रमशः व्याकरण से कर्तृकर्मणो कृति उभयप्राप्ती कर्मणि इति सूत्रद्वयसम्बन्धिसम्बन्धनियामकभाव विचारः व न्याय से न्यायदिशा आत्मतत्त्वविचारः पर छात्रों ने अपना पक्ष रखा। वहीं वेदान्त विषय में वेदान्तपरिभाषादृष्ट्या प्रत्यक्षत्वप्रयोजक पर मत प्रस्तुत किया गया। पुरस्कृत छात्रों को दैवज्ञ वाचस्पति पं यागेवर पाठक- वेदमूर्ति पं रमाकांत पाठक-महा महोपाध्याय पं बटुकनाथ शास्त्री खिस्ते की स्मृति में पुरस्कार प्रदान किये गए। सायं काल विद्वत गोष्ठी आयोजित हुई। इसमें मुख्य अतिथि के रूप में शहर दक्षिणी के विधायक डॉ नीलकंठ तिवारी रहे। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि सांस्कृतिक विरासत की मूल में है संस्कृत। देवभाषा के सम्मान से ही हम सबका गौरव है। आज भी विदेशी हमारी ही संस्कृति की नकल करते हैं। हमारे राष्ट्र में संस्कृत भाषा ने सदैव ही उच्चतम शिखर पर रही है, आवश्यकता है की नयी पीढ़ी में इसको आगे बढ़ाने की ललक होनी चाहिए। अतः इस प्रकार के सांस्कृतिक व बौद्धिक आयोजन सतत् क्रियाशील रहें तभी समाज आगे बढ़ सकेगा। अध्यक्षता पूर्व कुलपति प्रो राजाराम शुक्ल ने किया। विद्वानों में सर्वश्री डॉ गणेश दत्त शास्त्री, डॉ दिव्य स्वरूप ब्रह्मचारी, डॉ रमाकांत पाण्डेय, डॉ हरी प्रसाद अधिकारी, डॉ महेंद्र पाण्डेय, डॉ कमलाकांत त्रिपाठी, डॉ रमेश चंद्र पाण्डेय, डॉ विजय पाण्डेय सहित संस्कृत के अनेक विद्वान शामिल हुए। चारों वेद के उदीयमान वाल वैदिकों द्वारा वेदघोष तत्पश्चात् वैदिक विद्वानों का सम्मान किया गया। कार्यक्रम का संचालन डॉ वृहस्पति भट्टाचार्य व धन्यवाद ज्ञापन डॉ विनोद राव पाठक, स्वागत यादव राव पाठक ने किया।