गुरु-शिष्य परंपरा भारतीय संस्कृति की एक महत्वपूर्ण धरोहर है-कुलपति
ब्यूरो चीफ़ आनंद सिंह अन्ना
वाराणसी। शिक्षक दिवस हर साल 5 सितंबर को मनाया जाता है, जो भारत के दूसरे राष्ट्रपति डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जयंती के उपलक्ष्य में होता है। डॉ राधाकृष्णन एक महान शिक्षक, दार्शनिक और राजनेता थे जिन्होंने शिक्षा के महत्व पर जोर दिया और शिक्षकों को समाज के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले व्यक्तियों के रूप में देखा। उक्त विचार सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी के कुलपति प्रो बिहारी लाल शर्मा ने आज शिक्षक दिवस के पूर्व संध्या पर अपने विचार व्यक्त किए। कुलपति प्रो शर्मा ने कहा कि डॉ राधाकृष्णन का जन्म 5 सितंबर 1888 को तमिलनाडु के तिरुत्तनी गांव में हुआ था। वे एक महान दार्शनिक, शिक्षाविद और लेखक थे जिन्होंने भारतीय संस्कृति और शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने अपने जीवन के 40 वर्ष एक शिक्षक के रूप में बिताए और राष्ट्रपति बनने के बाद भी वे अपने आप को एक शिक्षक ही मानते थे। प्रो बिहारी लाल शर्मा जी ने शिक्षकों की भूमिका और जिम्मेदारी को महत्व देते हुए कहा कि शिक्षक संस्कृत, संस्कृति और संस्कार के संदर्भ में विद्यार्थियों को उत्तम कार्य करने का पाठ पढ़ाते हैं। वे न केवल ज्ञान प्रदान करते हैं, बल्कि छात्रों को राष्ट्र, समाज और परिवार के प्रति उत्तम चरित्र, नैतिकता, राष्ट्रीयता और दया भाव का अध्ययन कराते हैं। शिक्षा का उद्देश्य केवल ज्ञान प्रदान करना नहीं है, बल्कि छात्रों को श्रेष्ठ नागरिक बनाना है। जब श्रेष्ठ विद्यार्थी होंगे, तभी श्रेष्ठ भारत का निर्माण होगा। गुरु-शिष्य परंपरा भारतीय संस्कृति की एक महत्वपूर्ण धरोहर है। गुरु अपने शिष्यों को न केवल ज्ञान प्रदान करते हैं, बल्कि उन्हें जीवन के सही मार्ग पर चलने के लिए भी प्रेरित करते हैं। शिक्षकों को श्रेष्ठ गुरु बनकर श्रेष्ठ विद्यार्थियों का निर्माण करना चाहिए। उन्हें अपने भाव और आदर के माध्यम से छात्रों को उत्तम कर्म करने के लिए प्रेरित करना चाहिए। शिक्षक समाज के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे न केवल छात्रों को ज्ञान प्रदान करते हैं, बल्कि उन्हें समाज के प्रति जिम्मेदार नागरिक बनने के लिए भी प्रेरित करते हैं। कुलपति प्रो बिहारी लाल शर्मा ने कहा कि शिक्षक दिवस हमें शास्त्रोक्त और सामाजिक उत्थान के महत्व को समझने का अवसर प्रदान करता है। शिक्षकों को अपने ज्ञान और अनुभव के माध्यम से छात्रों को शास्त्रोक्त मूल्यों और सामाजिक जिम्मेदारी के प्रति जागरूक करना चाहिए। इससे समाज में सकारात्मक परिवर्तन आएगा और देश के भविष्य को उज्ज्वल बनाने में मदद मिलेगी।