नारद घाट स्थित दत्तात्रेय मठ में मूर्धन्य विद्वानों का हुआ सम्मान।
ब्यूरो आनंद सिंह अन्ना
वाराणसी। नारद घाट स्थित दत्तात्रेय मठ में काशी के मूर्धन्य विद्वान महामहोपाध्याय ब्रह्मचारी मणि द्रविड़ एवं महामहोपाध्याय देवदत्त पाटील का काशी के वैदिक विद्वानों की उपस्थिति में अभिनंदन किया गया।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ राजाराम शुक्ला एवं अध्यक्षता महाराष्ट्र से पधारे स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती ने की।
महामहोपाध्याय आर. मणि द्राविड़ शास्त्री काशी में अर्जित वैदिक ज्ञान का विस्तार दक्षिण भारत में कर रहे हैं। आप पद्मभूषण पण्डितराज राजेश्वर शास्त्री द्राविड़ के (दौहित्र) हैं। अनेक वर्षों तक भ्रमणशील रहते हुए अध्ययन-अध्यापन के दौरान काशी सदैव केंद्र में रही। पिता वेदपंडित रामचंद्र घनपाठी तथा माता भवानी के संस्कारों ने एक ऐसा व्यक्तित्व तैयार किया जिसने आज काशी का झंडा दक्षिण भारत में बुलंद किया हुआ है।
वैदिक विद्वान चंद्रशेखर द्रविड़ ने बताया कि न्यायरत्न रामचंद्र शास्त्री होसमने, शास्त्ररत्नाकर पं. एस. सुब्रह्मण्य शास्त्री, पद्मभूषण पीएन. पट्टाभिराम शास्त्री, शास्त्ररत्नाकर एसआर कृष्णमूर्ति शास्त्री जैसे विद्वानों के सानिध्य में शास्त्र शिक्षा अर्जित करने का प्रतिफल उनके द्वारा लिखित संपादित दो दर्जन से अधिक ग्रंथों में स्पष्ट रूप से झलकता है। पं. चंद्रशेखर घनपाठी उनकी कुछ प्रमुख कृतियों की चर्चा करते हुए बताते हैं की इनमें ब्रह्म-सूत्र-शांकर-भाष्य, चित्सुखाचार्य के भाष्यभावप्रकाशिका, आनंदगिरि के न्याय-निर्णय, प्रकाशात्मा के शारीरक-न्याय-संग्रह, आठ उपनिषदों (ईश, केन, कठ, मुंडक, प्रश्न, मांडूक्य, ऐतरेय और तैत्तिरीय) पर शंकराचार्य विरचित भाष्य की टिप्पणी के साथ टीका, शंकराचार्य के छान्दोग्योपनिषद् भाष्य पर दो टीकाएं, भगवद्गीता- शांकर-भाष्य तीन व्याख्या सहित, श्रीनारायणश्रम का अद्वैत सिद्धांत सार संग्रह, द्वा सुपर्णेति श्रुत्यर्थ निर्णय, शिव तत्त्व विवेकदीपिका, शास्त्रदीपिका-तर्कपाद विवृति, सद्विद्या विलास, न्यायेंदुशेखर तथा भाष्य भानु प्रभा जैसे महत्वपूर्ण ग्रंथों का संपादन किया है। उन्हें अब तक प्राप्त प्रमुख उपाधियों और पुरस्कार उनकी विद्वत्ता को प्रमाणित करते हैं। अद्वैत सभा, कुंभकोणम की परीक्षाओं में पुरस्कृत होने से जो सिलसिला शुरू हुआ वह मधुसूदन सरस्वती पुरस्कार, अद्वैतसिद्धि रत्नाकर की उपाधि, वेदांत-शास्त्र विशारद, देशिकोत्तम की उपाधि, 2003 में भारत के राष्ट्रपति द्वारा महर्षि बादरायण व्यास सम्मान, महामहोपाध्याय, शास्त्र वारिधि, अद्वैत वेदांत सम्राट, पूर्वोत्तर मीमांसा भास्कर की उपाधियों सहित अनेक संस्थाओं के द्वारा पुरस्कार आपने प्राप्त किया है।