Kashi ka News मणिकर्णिका घाट महाश्मशान पर 21 मार्च को खेली जाएगी विश्व प्रसिद्ध चीता भस्म की होली।

मणिकर्णिका घाट महाश्मशान पर 21 मार्च को खेली जाएगी विश्व प्रसिद्ध चीता भस्म की होली।

ब्यूरो चीफ आनंद सिंह अन्ना

वाराणसी। दिनांक 20 मार्च, सुबह से भक्त जन दुनिया की दुर्लभ, चीता भस्म से खेली जाने वाली होली की तैयारी में लग जाते है और जहा दुःख व अपनो से बिछडने का संताप देखा जाता था वहां उस दिन शहनाई की मंगल ध्वनि बजती है। हर शिवगण अपने-अपने लिए उपयुक्त स्थान खोज कर इस दिव्य व अलौकिक दृश्य को अपनी अन्तंरआत्मा में उतार कर शिवोहम् होने को अधिर हुए जाता है। बाबा के मध्याह्न स्नान का उस समय मणिकर्णिका तीर्थ पर तो भक्तों का उत्साह देखते ही बनता है, हजारों-हजार की संख्या में भक्तों का जन सैलाब मणिकर्णिका घाट पर पहुंचता हैं।

कहा जाता हैं कि बाबा दोपहर में मध्याह्न स्नान करने मणिकर्णिका तीर्थ पर आते हैं तत्पश्चात सभी तीर्थ स्नान करके यहां से पुन्य लेकर अपने स्थान जाते हैं और उनके वहां स्नान करने वालों को वह पुन्य बांटते हैं।अंत बाबा स्नान के बाद अपने प्रिय गणों के साथ मणिकर्णिका महामशान पर आकर चीता भस्म से होली खेलते है। वर्षों की यह परम्परा अनादि काल से यहा भव्य रूप से मनायी जाती रही हैं। इस परम्परा को पुनर्जीवित किया बाबा महाश्मसान नाथ मंदिर के व्यवस्थापक काशीपुत्र गुलशन कपूर ने जो पिछले 23 वर्षों से इस परम्परा को भव्य रूप देकर दुनिया के कोने-कोने तक जन सहयोग से पहुंचाया है।

'काशी का न्यूज' को गुलशन कपूर ने इस कार्यक्रम के बारे में विस्तार से बताते हुए कहा की काशी में यह मान्यता है कि रंगभरी एकादशी के दिन बाबा विश्वनाथ माता पार्वती का गौना (विदाई) करा कर अपने धाम काशी लाते हैं जिसे उत्सव के रूप में काशीवासी मनाते है और रंग का त्योहार होली का आज से प्रारम्भ माना जाता है। इस उत्सव में सभी देवी, देवता, यक्ष, गन्धर्व, मनुष्य और बाबा के प्रिय गण भूत, प्रेत, पिशाच, किन्नर, दृश्य, अदृश्य, शक्तियाँ जिन्हें बाबा ने स्वयं मनुष्यों के बीच जाने से रोक रखा है वह सभी शामिल होते हैं। बाबा शिवशंकर उन सभी के साथ चीता भस्म की होली खेलने मशान आते हैं और आज से ही सम्पूर्ण विश्व को प्रंश्नता, हर्ष-उल्लास देने वाले इस त्योहार होली का आरम्भ होता हैं जिसमें दुश्मन भी गले मिल जाते हैं।

उन्होंने बताया कि इस पारंपरिक उत्सव को काशी के मणिकर्णिका घाट पर जलती चीताओ के बीच मनाया जाता हैं जिसे देखने दुनिया भर से लोग काशी आते हैं। और इस अद्भुत, अद्वितीय, अकल्पनीय होली को देखकर, खेलकर दुनिया की अलौकिक शक्तियों के बीच अपने को खड़ा पाते हैं और जीवन के सास्वत सत्य से परिचित होकर बाबा को अपने में आत्मशात करते हैं।