डॉ नरेश त्यागी की पहली पुस्तक ‘सस्टेनेबल प्रॉमिसेस-हार्मोनाइजिंग होराइज़न’ का विमोचन।
ब्यूरो चीफ आनंद सिंह अन्ना
वाराणसी: उत्तर प्रदेश के मशहूर सस्टेनेबिलिटी रणनीतिकार और भविष्यवादी डॉ नरेश त्यागी ने अपनी पहली पुस्तक सस्टेनेबल प्रॉमिसेस- हार्मोनाइजिंग होराइज़न में, टिकाऊ एवं स्थिर जीवन को लेकर अपना गहरा जुनून व लगाव प्रकट किया है। इस पुस्तक का विमोचन भारत सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार डॉ वी अनंथा नागेश्वरन ने, वाराणसी स्थित रुद्राक्ष- इंटरनेशनल कोऑपरेशन एंड कन्वेंशन सेंटर में किया। सस्टेनेबल प्रॉमिसेस - हार्मोनाइजिंग होराइज़न भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत एवं पारिस्थितिक ज्ञान को उजागर करने वाली कहानियों का सोच-समझकर तैयार किया गया एक ऐसा संग्रह है, जो इस धारणा को चुनौती देता है कि सस्टेनेबिलिटी कोई आधुनिक संकल्पना ही है। इस पुस्तक में भारत के सांस्कृतिक, पारिस्थितिक और विभिन्न सामाजिक फलसफों पर गहराई से चर्चा की गई है, जिससे यह साबित हो जाता है कि टिकाऊ एवं स्थिर जीवन सदा से ही हमारे राष्ट्र की पहचान का अभिन्न अंग रहा है। जलवायु संकट गहराते जाने के साथ, यह पुस्तक भारत के शाश्वत ज्ञान को दोबारा खोज निकालने तथा इसका लाभ उठाकर ज़्यादा हरा-भरा और लचीला भविष्य बनाने का एक मजबूत तर्क पेश करती है।
मूलतः यह पुस्तक पाठकों को सस्टेनेबिलिटी के बारे में, केवल पर्यावरण से जुड़े विभिन्न कार्यों के रूप में नहीं, बल्कि भारत के इतिहास में गुंथी हुई एक जीवन शैली की शक्ल में विचार व चिंतन करने का न्यौता देती है। डॉ. त्यागी ने पृथ्वी, आकाश और अंतरिक्ष की आपसी निर्भरता को उजागर करने वाली ऋग्वेद की शिक्षाओं से लेकर सम्पूर्ण विश्व को एक ही परिवार मानने वाले -वसुधैव कुटुम्बकम-के दर्शन तक, अपना अनूठा दृष्टिकोण प्रस्तुत किया है: केवल मनुष्यों के बीच ही नहीं, बल्कि मानवता और प्रकृति के बीच सामंजस्य को बढ़ावा देना सस्टेनेबिलिटी का अर्थ होता है। यह पुस्तक भारत के पारंपरिक पारिस्थितिक ज्ञान में गहराई से गोता लगाती है, जिसमें से निकल कर आता है कि वास्तु शास्त्र जैसे सिद्धांत वास्तुकला को प्राकृतिक तत्वों के साथ किस तरह से जोड़ते हैं, तथा खेती की प्राचीन पद्धतियों ने किस प्रकार से संरक्षण एवं जैव विविधता को तरजीह दी थी। डॉ. त्यागी इस बात की छानबीन भी करते हैं कि लोक कथाओं, सामुदायिक रीति-रिवाजों और आध्यात्मिक मान्यताओं ने प्राकृतिक संसाधनों के प्रति समूचे भारत में गहरा सम्मान कैसे पैदा किया-ये ऐसे सिद्धांत हैं, जो सस्टेनेबिलिटी के लिए वर्तमान में निर्धारित लक्ष्यों के साथ निर्बाध रूप से संरेखित हैं।दिलचस्प ऐतिहासिक विश्लेषण, ठोस उपमाओं और ज़िंदगी के असली किस्सों के दम पर, सस्टेनेबल प्रॉमिसेस भूतकाल को वर्तमान से जोड़ देती है। यह पुस्तक जलवायु परिवर्तन एवं पर्यावरण में आई गिरावट से लेकर सामाजिक गैरबराबरी के चलते उपजी तात्कालिक वैश्विक चुनौतियों से निबटती है, और इस बात पर प्रकाश डालती है कि किस प्रकार से प्राचीन भारतीय प्रथाएं ऐसे-ऐसे समाधान प्रदान करती हैं जो आज भी प्रासंगिक हैं। पुस्तक में इस बात पर ज़ोर दिया गया है कि सतत विकास का मतलब केवल तकनीक या पॉलिसी बनाना ही नहीं होता, बल्कि अपने ग्रह की देखभाल और जिम्मेदारी उठाने वाले रिश्ते को दोबारा कायम करना सस्टेनेबल डेवलपमेंट का अर्थ है। डॉ. त्यागी भविष्य का एक दृष्टिकोण भी प्रस्तुत करते हैं, जिसमें दिखाया गया है कि अक्षय ऊर्जा, सस्टेनेबल फैशन और पर्यावरण की समुदाय-संचालित पहलों के साथ नवाचार करते हुए, भारत किस प्रकार आगे बढ़ रहा है। पुस्तक यह तर्क देते हुए तकनीक और परंपरा के बीच संतुलन तलाशती है कि कुदरत की कीमत पर प्रगति नहीं आनी चाहिए - इसके बजाए, दोनों के बीच सचेत व सतर्क सहभागिता करके तरक्की हासिल की जा सकती है। सस्टेनेबल प्रॉमिसेस एक दार्शनिक चिंतन एवं ऐसी उपयोगी गाइड का काम करेगी, जिससे व्यक्ति, कारोबार और नीति निर्माता इस बात के लिए प्रेरित होंगे कि वे सस्टेनेबिलिटी को एक साझा सांस्कृतिक जिम्मेदारी के रूप में अपनाएँ।