Kashi ka News. महाकवि जयशंकर प्रसाद की जयंती पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन।

महाकवि जयशंकर प्रसाद की जयंती पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन।

ब्यूरो चीफ आनंद सिंह अन्ना

वाराणसी। दिनांक 31 जनवरी, महाकवि जयशंकर प्रसाद की जयंती के उपलक्ष्य पर विद्याश्री न्यास एवं महाकवि जयशंकर प्रसाद ट्रस्ट के तत्वाधान में 'प्रसाद का उपन्यास-साहित्य चिंतन के विविध आयाम' विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी एवं संगीतमय महोत्सव का आयोजन राजकीय जिला पुस्तकालय, एल टी कॉलेज वाराणसी में गुरुवार को आयोजित किया गया।

महोत्सव की शुरुआत दीप प्रज्ज्वल से हुई। उसके पश्चात कंचन सिंह परिहार द्वारा सरस्वती वंदना एवं शिव स्तुति की गई।

अतिथियों का स्वागत महाकवि जयशंकर प्रसाद फाउंडेशन द्वारा डॉ दयानिधि मिश्र ने किया।

डॉ दयानिधि मिश्र ने अतिथियों का स्वागत करते हुए बनारस की विरासत पर बात किया। आपने प्रसाद के आयोजन के साथ एक प्रस्ताव रखा कि आज इस अवसर पर हमें बनारस के धरोहरों पर विचार करना होगा। साथ हीं हमें साहित्य की हर विधा पर गंभीरता से सोचना होगा।

प्रो ओमप्रकाश सिंह अपने अध्यक्षीय उदबोधन में कहा कि प्रसाद ऐसे रचनाकार है जो लुक-छिप कर आते हैं पर उपन्यास में वह ऐसा नहीं कर पाते। 'तितली' उपन्यास किसानी जीवन का उपन्यास है। प्रसाद आदिजीवन को रचते हैं।'कंकाल' उपन्यास में प्रसाद हिंदू धर्मों के आड़म्बरों को रचते हैं जो प्रेमचंद नहीं रच पाते। हमें प्रसाद को पढ़ने के लिए उनकी रचनाओं को एक सूत्र में करके पढ़ना होगा। रामचंद्र शुक्ल ने जिस रहस्यवाद को विदेशी वस्तु कहा, प्रसाद ने उसे पूरी तरह ख़ारिज करके रहस्यवाद को भारतीय चिंतनधारा की परिणति कहा। रचनाकार को समझने के उसके सूत्र को समझना आवश्यक हैं तभी हम यह समझ पाएंगे की वह हमें किस ओर ले जा रहा है।

रामचंद्र शुक्ल मनोविकार पर अनेक निबंध लिखा हैं ओर प्रसाद की कामायनी भी मनोविकारों पर ही आधारित है तो इसे जोड़कर देखना आवश्यक है।

मुख्य अतिथि के रूप में आये प्रो सुरेंद्र प्रताप ने बताया कि प्रसाद का उपन्यास अन्य उपन्यासकारों के साथ जोड़कर नहीं देखना चाहिए, प्रसाद मुख्यत कवि है उनके साहित्य का केंद्र बिंदु काव्यात्मकता है, उनके कहानियों का स्टक्चर रोमानी है। उनका धरातल पक्का बनारसी है, इनका इतिहास बोध ऐतिहासिक और पौराणिक है उनकी ऐतिहासिकता उनके चिंतन के केंद्र बिंदु है। उनकी परम्परा में काशी, काशी की संस्कृति है। आगे आपने कहा कि प्रसाद के कामायनी को समझने में मुक्तिबोध को बीस वराह लग गए, मुक्तिबोध ने कामायनी के माध्यम से प्रसाद को समझने की कोशिश की। प्रसाद समरसता का संदेश देते है। प्रसाद विश्वदृष्टि में विश्वबोध के कवि हैं।

डॉ इंदीवर ने-इरावती उपन्यास पर अपनी बात रखते हुए कहा कि प्रसाद का उपन्यास इरावती पढ़ते हुए हमें उसके अधूरेपन की नियति को पकड़ना होगा। प्रसाद की मूल क्रीड़ा भूमि इतिहास चेतना ही है। जो इतिहास की भूमि के साथ साहित्य की भूमि को भी निर्मित करती है। प्रसाद के उपन्यास का फलक उतना व्यापक नहीं है जितना की नाटकों का है। 108 पेज का उपन्यास 'इरावती' ज्यो का त्यों प्रकाशित किया गया। इरावती का कथानक मौर्य वंश के अधोपतन के समय का है। इसी के साथ एक आंतरिक कथानक है जो इरावती को लेकर है। पूरा उपन्यास इरावती के इर्द-गिर्द ही घूमता है। इस तरह आपने इरावती, पुष्यमित्र,कालिंदी आगँतुक, अग्निमित्र आदि पात्रों के माध्यम से अपनी बात रखी। प्रसाद इतिहास के मर्मज्ञ है उनके इतिहास के संकलन का स्रोत पुराणों, उपनिषदों, आदि ऐतिहासिक ग्रंथों से लिया गया है।

प्रो सत्यदेव त्रिपाठी ने तितली उपन्यास पर अपनी बात रखते हुए कहा कि प्रसाद के तितली उपन्यास का मूल तत्व प्रेम ही है।उपन्यास की शुरुआत ही उपेक्षित वर्ग एवं प्रेम से होता है। प्रसाद यथार्थ की अभिव्यक्ति के लिए उपन्यास रचते है और इसी यथार्थ के साथ वह प्रेम भी ले आते हैं। तितली के नायक को समझने के लिए कामायनी को पढ़ना जरुरी है। एक बात समझने की है कि प्रसाद के किसी रचना में दाम्पत्य जीवन का सुख क्यों नहीं है ? इसका मनो विश्लेषणात्मक अध्ययन होना चाहिए। प्रसाद की संकल्पनाओं में नाटकीय ढंग से सब कुछ आ जाता है।कविता नाटक लिखना उनकी प्रकृति थी पर उपन्यास उन्होंने अडॉप्ट किया।

डॉ रामसुधार सिंह ने-'कंकाल' उपन्यास पर अपनी बात रखते हुए कहा कि कंकाल के बिखराव को बटोरा नहीं जा सकता है। कथा का बिखराव कष्टकर है जिसका एक कारण यह भी है कि पात्रों और घटनाओं की संख्या बहुत अधिक है । प्रसाद जी मूल नाटककार एवं कवि के रूप में विख्यात है जो उनकी प्रकृति है। प्रसाद इतिहास के माध्यम से समकाल को रच रहे थे। कंकाल की कथा के स्थान तीर्थ स्थल है। जिसका कारण उनकी धार्मिक चेतना है। प्रसाद हर उस पात्र का जिक्र करते है जो समाज सुधार का ठीका लेते है।प्रसाद जी उनके चरित्र का भी उजागर करते है जो धर्म का ठीका लिए हुए है। इस तरह यह उपन्यास उस समय की स्थितियों को उजागर करता है। प्रसाद समस्या तो उठाते है पर उसका समाधान पाठक पर छोड़ देते हैं।

संचालन डॉक्टर प्रकाश उदय ने किया तथा धन्यवाद प्रकाश प्रसाद जी प्रपौत्री डॉक्टर कविता प्रसाद ने किया। इस अवसर पर डॉक्टर अशोक कुमार सिंह, नरेंद्र नाथ मिश्र, रामानंद दीक्षित, डॉक्टर ऋचा सिंह, डॉक्टर प्रीति जायसवाल डॉक्टर रंजना कुमारी गुप्ता सहित बड़ी संख्या में साहित्यकार, कवि, शोध छात्र एवं अध्ययनरत विद्यार्थी उपस्थित थे