भारतीय परम्परा में भगवान शिव की महिमा व महाशिवरात्रि की महत्ता- कुलपति
ब्यूरो चीफ आनंद सिंह अन्ना
वाराणसी। दिनांक 24 फरवरी, भारतीय संस्कृति में भगवान शिव को सर्वोच्च देवता के रूप में पूजा जाता है। वे संहारक, सृजनकर्ता और पालनकर्ता के रूप में त्रिदेवों में प्रमुख स्थान रखते हैं। शिव अनादि, अजन्मा और सनातन चेतना के प्रतीक हैं। उक्त विचार सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो बिहारी लाल शर्मा ने आज महाशिवरात्रि पर्व के महात्म और उसके वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर प्रकाश डालते हुए कहा कि शिव को निर्गुण ब्रह्म और सगुण ईश्वर दोनों रूपों में पूजा जाता है, अर्धनारीश्वर रूप, यह स्त्री-पुरुष समानता और संतुलन का प्रतीक है, शिव की जटाओं में विराजमान गंगा ज्ञान और पवित्रता का प्रतीक है, जबकि चंद्रमा शीतलता और संतुलन दर्शाता है। नटराज स्वरूप, ब्रह्मांडीय नृत्य और ऊर्जा चक्र को दर्शाता है। त्रिशूल तीन गुणों (सत्व, रज, तम) को नियंत्रित करता है, और डमरू ब्रह्मांडीय स्पंदन का प्रतीक है। भगवान शिव केवल आध्यात्मिक सत्ता नहीं हैं, बल्कि उनका प्रभाव लोकजीवन में गहराई से समाहित है। भगवान शिव का वैरागी स्वरूप लोकमानस में त्याग और संतोष का आदर्श प्रस्तुत करता है। शिव को भोलेनाथ कहा जाता है, जो भक्तों की भक्ति मात्र से प्रसन्न हो जाते हैं, वे पर्वतराज हिमालय में वास करते हैं, जो प्रकृति प्रेम और पर्यावरण संरक्षण का प्रतीक है। महाशिवरात्रि के अवसर पर गाँवों और नगरों में शिव-पार्वती विवाह उत्सव मनाया जाता है, ग्रामीण भारत में शिव भक्ति के लोकगीत और कीर्तन प्रसिद्ध हैं। शिव को आदियोगी माना जाता है, जिनकी साधना योग और ध्यान के माध्यम से की जाती है। शिव उपासना में जाति-पंथ का भेदभाव नहीं होता, जिससे सामाजिक समरसता बनी रहती है। शिव की आराधना में शक्ति (कर्म) और भक्ति (श्रद्धा) का अनूठा संगम देखने को मिलता है। शिव के गणों में सभी वर्गों और प्रजातियों का समावेश है, जो समता का आदर्श स्थापित करता है।
उन्होंने बताया कि महाशिवरात्रि भारत का एक प्रमुख पर्व है, जो भगवान शिव की आराधना, तपस्या और भक्ति का अवसर प्रदान करता है। यह पर्व भारत के हर कोने में भिन्न-भिन्न रूपों में मनाया जाता है। इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह संपन्न हुआ था, इस दिन भगवान शिव ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए थे। शिव ने संसार की रक्षा के लिए हलाहल विष का पान किया था, इस दिन काशी विश्वनाथ, सोमनाथ, महाकालेश्वर, केदारनाथ आदि प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंगों में भव्य आयोजन होते हैं, मन्दिरों में शिव तांडव स्तोत्र का पाठ किया जाता है और रुद्राभिषेक किया जाता है, रात्रि जागरण और भजन-कीर्तन भारतीय लोकसंस्कृति का अभिन्न अंग है, महाशिवरात्रि का व्रत आत्मचिंतन और मोक्ष प्राप्ति का अवसर देता है, इस दिन ध्यान करने से ऊर्जा केंद्र (चक्र) जाग्रत होते हैं।'ॐ नमः शिवाय' के जाप से मन को शांति और संतुलन प्राप्त होता है, शिव उपासना में सभी जातियों और वर्गों का समावेश होता है, इस दिन अन्नदान और जरूरतमंदों की सहायता की जाती है। शिव-पार्वती का विवाह स्त्री-पुरुष समानता को दर्शाता है। शिवलिंग सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है। जल, दूध, और अभिषेक, ऊष्णता को नियंत्रित करता है और वातावरण को शुद्ध करता है, ॐ' ध्वनि शरीर के चक्रों को सक्रिय करता है और मानसिक शांति देता है। मंत्र जाप ध्वनि विज्ञान के अनुसार शिव मंत्र जाप से नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है।
उन्होंने कहा कि महाशिवरात्रि केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि आध्यात्मिक, सामाजिक और वैज्ञानिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। भगवान शिव की साधना और महाशिवरात्रि की परम्परा हमें संतुलित जीवन जीने की प्रेरणा देती है। शिव की भक्ति से आत्मिक शुद्धि, मानसिक संतुलन और समाज में समरसता का विकास होता है।