महाकवि जयशंकर प्रसाद साहित्य-संस्कृति महोत्सव संपन्न।
ब्यूरो चीफ़ आनंद सिंह अन्ना
वाराणसी। दिनांक 29 मार्च, वाराणसी के पावन धरा पर आयोजित महाकवि जयशंकर प्रसाद साहित्य-संस्कृति महोत्सव अपने अंतिम दिन एक भव्य और प्रभावशाली समापन के साथ संपन्न हुआ।
यह महोत्सव साहित्य, कला, संगीत, और रंगमंच का अद्भुत संगम रहा, जिसमें महाकवि जयशंकर प्रसाद की कृतियों और उनके साहित्यिक योगदान को नई पीढ़ी तक पहुँचाने का महत्वपूर्ण कार्य किया गया। चार दिन तक चले इस महोत्सव ने साहित्यप्रेमियों, कलाकारों और विद्वानों को एक साथ लाने का अवसर प्रदान किया।
महोत्सव के अंतिम दिन, चित्रकला शिविर, प्रसाद संगीतमय संध्या, और नाट्योत्सव के माध्यम से जयशंकर प्रसाद के साहित्य और कला को भव्य रूप में प्रस्तुत किया गया। इसके साथ ही, राष्ट्रीय संगोष्ठी और परिसंवाद में प्रसाद के साहित्यिक योगदान पर विद्वानों द्वारा गहन चर्चा की गई।
शिविर में वरिष्ठ चित्रकारों ने प्रसाद के काव्य संसार को सजीव रूप दिया, जिससे उनकी रचनाओं की गहराई और भावनात्मकता को दर्शकों ने प्रत्यक्ष अनुभव किया। शिविर में भाग लेने वाले प्रमुख कलाकारों में सुनील कुमार विश्वकर्मा, अजय उपासनी, आशा देवी, बलदाऊ वर्मा, नीतू वर्मा, और राजकुमार सिंह शामिल थे। इन चित्रकारों ने प्रसाद के साहित्य में समाहित दार्शनिकता, मानवतावाद, और सांस्कृतिक तत्वों को अपने-अपने चित्रों के माध्यम से उजागर किया। विशेष रूप से, ‘कामायनी’ के चित्रण ने दर्शकों को अतीत के भव्यता और वर्तमान की जटिलता के बीच संतुलन बनाने का संदेश दिया।
समापन समारोह में वरिष्ठ कलाकारो को स्मृति चिन्ह, अंगवस्त्रम, और प्रमाणपत्र प्रदान कर सम्मानित किया गया। यह सम्मान प्रसाद के साहित्यिक और सांस्कृतिक धरोहर को सम्मानित करने के महोत्सव के उद्देश्य को पूर्ण करता है।
महोत्सव में प्रसाद संगीतमय संध्या में संगीत के धुरंधरों ने प्रसाद के साहित्यिक काव्य में छिपी भावनाओं को सुरों में ढालकर प्रस्तुत किया।
कार्यक्रम की शुरुआत डॉ राजेश गौतम, निदेशक, आकाशवाणी और दूरदर्शन द्वारा बांसुरी की मधुर धुन गीतों की प्रस्तुति से हुई इसके बाद, श्रीमती सुचरिता गुप्ता ने प्रसाद के प्रसिद्ध गीतों और ‘कामायनी’ के छंदों को अपनी सुरीली आवाज़ में प्रस्तुत किया।
संध्या का समापन प्रसिद्ध सितारवादक पंडित देवव्रत मिश्रा के मंत्रमुग्ध कर देने वाले सितारवादन से हुआ। पंडित मिश्रा की सितार की ध्वनियों ने प्रसाद के काव्य में छिपी भावना, करुणा और संवेदना को संगीत के माध्यम से जीवंत कर दिया। यह संगीत संध्या श्रोताओं के लिए एक अनमोल सांगीतिक अनुभव सिद्ध हुई, जिसमें साहित्य और संगीत का अद्भुत संगम देखने को मिला।