रामनवमी: मर्यादा, संस्कृति और विज्ञान का उत्सव- प्रो० बिहारी लाल शर्मा
ब्यूरो चीफ़ आनंद सिंह अन्ना
वाराणसी। दिनांक 6 अपैल, चैत्र शुक्ल नवमी, भारतीय पंचांग के अनुसार, एक अत्यंत पावन तिथि है यह वह दिन है जब त्रेतायुग में अयोध्या में राजा दशरथ के घर भगवान श्रीराम का जन्म हुआ। यह तिथि रामनवमी के रूप में भारतवर्ष ही नहीं, अपितु विश्व के कई भागों में श्रद्धा, भक्ति और सांस्कृतिक उत्सव के रूप में मनाई जाती है। परंतु रामनवमी मात्र एक धार्मिक पर्व नहीं है यह भारतीय जीवन-दर्शन का बहुआयामी उत्सव है, जिसमें धर्म, संस्कृति, समाज और विज्ञान का समन्वय दिखाई देता है। इस लेख में हम इस पर्व के इन चारों पक्षों का विस्तार से विवेचन करेंगे।उक्त विचार सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो बिहारी लाल शर्मा ने आज रामनवमी पर्व के पूर्व संध्या पर व्यक्त किया।
उन्होंने कहा कि रामनवमी का सबसे प्रमुख पक्ष भगवान राम के अवतरण का उत्सव है। श्रीराम को विष्णु का सप्तम अवतार माना गया है, जो त्रेतायुग में धर्म की रक्षा, राक्षसी शक्तियों के विनाश और लोक-कल्याण हेतु अवतरित हुए। वाल्मीकि रामायण, तुलसीकृत रामचरितमानस और अन्य रामकथाओं में उनका जीवन मर्यादा, संयम, धर्म और आदर्श का प्रतीक बताया गया है। वे मर्यादा पुरुषोत्तम हैं — जिन्होंने जीवन के हर क्षेत्र में आदर्श प्रस्तुत किया। राम का जीवन केवल पूजा का विषय नहीं, अनुकरणीय जीवनशैली है, जो ‘धर्मो रक्षति रक्षितः’ के सिद्धांत को प्रत्यक्ष रूप से चरितार्थ करता है।
उन्होंने कहा कि रामकथा भारत की सांस्कृतिक आत्मा है। रामनवमी के अवसर पर देशभर में होने वाली रामलीला, शोभायात्राएँ, भजन-कीर्तन, तथा विभिन्न रामकथाएँ इस पर्व को एक सांस्कृतिक पर्व बना देती हैं। रामकथा चित्रकला, मूर्तिकला, स्थापत्यकला और साहित्य में अनगिनत रूपों में अभिव्यक्त हुई है।लोकगीतों, भजनों, कहावतों, लोकनाटकों और ग्रामीण उत्सवों में राम की उपस्थिति भारत की गहरी सांस्कृतिक जड़ों की साक्षी है। इंडोनेशिया, थाईलैंड, नेपाल, म्यांमार, श्रीलंका जैसे देशों में रामकथा का सांस्कृतिक रूप विद्यमान है, जो भारत की नरसंस्कृति के वैश्विक प्रभाव को दर्शाता है।
रामनवमी का पर्व इस व्यापक सांस्कृतिक चेतना को पुनर्जीवित करने का अवसर प्रदान करता है। राम का जीवन एक आदर्श सामाजिक व्यवस्था की रचना का प्रतीक है — जिसे ‘रामराज्य’ के रूप में जाना जाता है। यह वह व्यवस्था थी, जहाँ: सबको न्याय मिलता था, समाज में कोई शोषित, पीड़ित या वंचित नहीं था, राजा स्वयं को प्रजा का सेवक मानता था।
रामनवमी समाज में नैतिकता, सदाचार, स्त्री-सम्मान, समरसता और सहिष्णुता जैसे मूल्यों के पुनः स्मरण का अवसर देती है। राम ने शबरी को अपनाकर वर्ग विभाजन को नकारा, निषादराज गुह को मित्र बनाकर जातीय समरसता का आदर्श प्रस्तुत किया, और सीता की अग्निपरीक्षा के माध्यम से राजधर्म एवं लोकचिंता के द्वंद्व को उजागर किया।
आज के समाज में जब वैमनस्य, असहिष्णुता और विघटन की प्रवृत्तियाँ बढ़ रही हैं, तब रामनवमी का पर्व सामाजिक पुनरुत्थान की प्रेरणा देता है।
उन्होंने बताया कि भारतीय त्योहारों की रचना केवल धार्मिक नहीं, प्राकृतिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत समृद्ध है। रामनवमी इस तथ्य का सुंदर उदाहरण है। यह पर्व वसंत ऋतु में आता है, जब प्रकृति नवजीवन से भर जाती है। यह काल स्वास्थ्य, पाचनशक्ति और मनोबल को सशक्त करने का श्रेष्ठ समय है। नवरात्र व्रत और रामनवमी व्रत, शरीर के विषहरण (डिटॉक्स) और आत्मशुद्धि में सहायक होते हैं। राम को सूर्यवंशी कहा गया है। इस दिन सूर्य को अर्घ्य देने से जीवन ऊर्जा का प्रवाह बढ़ता है। यह पर्व मन को स्थिर करने और अंतर्मुखी बनने का अवसर देता है, जिससे मानसिक स्वास्थ्य में वृद्धि होती है।इस प्रकार, रामनवमी एक शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक संतुलन का पर्व है। आज जब समाज नैतिक विचलन, सांस्कृतिक विस्मरण और सामाजिक विघटन से जूझ रहा है, तब रामनवमी का पर्व हमें श्रीराम के आदर्शों, मर्यादाओं और विचारधारा को पुनः स्मरण करने और जीवन में उतारने की प्रेरणा देता है। राम का जीवन किसी कालखंड का नहीं, बल्कि सर्वकालिक और सार्वभौमिक चेतना का प्रतीक है। आइए, इस रामनवमी पर संकल्प लें, हम राम को केवल पूजें नहीं, बल्कि उनके समान जीवन जीने का प्रयास करें।